एक ग़ज़ल : संदिग्ध आचरण है ......
संदिग्ध आचरण है , खादी का आवरण है
’रावण’ कहाँ मरा है ,’सीता’ का अपहरण है
जो झूठ के हैं पोषक दरबार में प्रतिष्ठित
जो सत्य के व्रती हैं वनवास में मरण है
शोषित,दलित व पीड़ित,मन्दिर कभी व मस्ज़िद
नव राजनीति का यह संक्षिप्त संस्करण है
ज़िन्दा कभी बिकेगा ,कौड़ी से कम बिकेगा
अनुदान लाश पर है ,भुगतान अपहरण है
सरकार मूक दर्शक ,शासन हुआ अपाहिज
सब तालियाँ बजाते भेंड़ों सा अनुसरण है
’रोटी’ की खोज बदले ,’अणु-बम्ब’ खोजते हैं
इक्कीसवीं सदी में दुनिया का आचरण है
हर शाम थक मरा हूँ ,हर सुबह चल पड़ा हूँ
मेरी जिजीविषा ही आशा की इक किरण है
संदिग्ध आचरण है , खादी का आवरण है
’रावण’ कहाँ मरा है ,’सीता’ का अपहरण है
जो झूठ के हैं पोषक दरबार में प्रतिष्ठित
जो सत्य के व्रती हैं वनवास में मरण है
शोषित,दलित व पीड़ित,मन्दिर कभी व मस्ज़िद
नव राजनीति का यह संक्षिप्त संस्करण है
ज़िन्दा कभी बिकेगा ,कौड़ी से कम बिकेगा
अनुदान लाश पर है ,भुगतान अपहरण है
सरकार मूक दर्शक ,शासन हुआ अपाहिज
सब तालियाँ बजाते भेंड़ों सा अनुसरण है
’रोटी’ की खोज बदले ,’अणु-बम्ब’ खोजते हैं
इक्कीसवीं सदी में दुनिया का आचरण है
हर शाम थक मरा हूँ ,हर सुबह चल पड़ा हूँ
मेरी जिजीविषा ही आशा की इक किरण है